फ़िराक गोरखपुरी शायरी | firaq gorakhpuri shayari

न हो एहसास तो सारा जहाँ है बे-हिस-ओ-मुर्दा
गुदाज़-ए-दिल हो तो दुखती रगें मिलती हैं पत्थर में

अहल-ए-ग़म तुम को मुबारक हो फ़ना-आमादगी
लेकिन ईसार-ए-मोहब्बत जान दे देना नहीं

आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए

firaq gorakhpuri shayari

ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएँ

अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

कुछ न पूछो ‘फ़िराक़’ अहद-ए-शबाब
रात है नींद है कहानी है

मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता

तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं

बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा’लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं

कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका

firaq gorakhpuri shayari in hindi

firaq gorakhpuri shayari in hindi

जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ

ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई

देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब ‘फ़िराक़’
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़

ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी

इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात

इक फ़ुसूँ-सामाँ निगाह-ए-आश्ना की देर थी
इस भरी दुनिया में हम तन्हा नज़र आने लगे

आज तक सुब्ह-ए-अज़ल से वही सन्नाटा है
इश्क़ का घर कभी शर्मिंदा-ए-मेहमाँ न हुआ

हम-आहंगी भी तेरी दूरी-ए-क़ुर्बत-नुमा निकली
कि तुझ से मिल के भी तुझ से मुलाक़ातें नहीं होतीं

firaq gorakhpuri ki shayari

ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
यही कि तेरी नज़र है तिरी नज़र फिर भी

तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो कौन ऐसा जुग जीत लिया
इश्क़ से पहले के दिन सोचो कौन बड़ा सुख होता था

ऐ मज़ाहिब के ख़ुदा तेरी मशिय्यत जो भी हो
इश्क़ को दीगर ख़ुदा दीगर मशिय्यत चाहिए

firaq gorakhpuri shayari in hindi

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें

हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में

firaq gorakhpuri shayari on love in hindi

न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
यारों ने कितनी दूर बसाई हैं बस्तियाँ

कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें

लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी

रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी

तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं

मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी

पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए

खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है

तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं

आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है

shayari of firaq gorakhpuri

जिस में हो याद भी तिरी शामिल
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए

मैं देर तक तुझे ख़ुद ही न रोकता लेकिन
तू जिस अदा से उठा है उसी का रोना है

कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
आसमानों को नींद आती है
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
आदमी को आदमी दरकार है

firaq gorakhpuri poetry in hindi

firaq gorakhpuri shayari in hindi

रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें

आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है

सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के ‘फ़िराक़’
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया

कह दिया तू ने जो मा’सूम तो हम हैं मा’सूम
कह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम

साँस लेती है वो ज़मीन ‘फ़िराक़’
जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं

असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ
शामें किसी को माँगती हैं आज भी ‘फ़िराक़’
गो ज़िंदगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं

firaq gorakhpuri quotes in hindi

तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
मोहब्बत में ये मा’सूमी बड़ी मुश्किल से आती है

तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बा’द देखा था तो आँसू आ गए

आज बहुत उदास हूँ
यूँ कोई ख़ास ग़म नहीं

इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात

सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं

अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमी
इक ज़रा दीवानगी दरकार है

जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ

बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर
अब आ गए हो तो आओ तुम्हें ख़राब करें

firaq shayari in hindi

बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं

ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा
और अगर रोइए तो पानी है

मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
दुनिया के मसाइब का सबब और ही कुछ है

हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए

आज आग़ोश में था और कोई
देर तक हम तुझे न भूल सके

firaq gorakhpuri hindi shayari

शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो
यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा’लूम न था

अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को
तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं

वक़्त-ए-पीरी दोस्तों की बे-रुख़ी का क्या गिला
बच के चलते हैं सभी गिरती हुई दीवार से

firaq gorakhpuri shayari in hindi

इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
हिज्र की भी आई नहीं नौबत

लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
ऊँची है किस क़दर तिरी नीची निगाह भी

ज़िंदगी में जो इक कमी सी है
ये ज़रा सी कमी बहुत है मियाँ

किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
अब तो वो ध्यान से उतर भी गए

क्या जानिए मौत पहले क्या थी
अब मेरी हयात हो गई है

‘फ़िराक़’ दौड़ गई रूह सी ज़माने में
कहाँ का दर्द भरा था मिरे फ़साने में

ख़ुश भी हो लेते हैं तेरे बे-क़रार
ग़म ही ग़म हो इश्क़ में ऐसा नहीं

firaq gorakhpuri kavita

मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ
जो भी मैं कहता गया हुस्न-ए-बयाँ बनता गया

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की
सौ बात बन गई है ‘फ़िराक़’ एक बात की

ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया
मेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई

कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
तिरे दम भर के मिल जाने को हम भी क्या समझते हैं

shayari by firaq gorakhpuri

दुनिया थी रहगुज़र तो क़दम मारना था सहल
मंज़िल हुई तो पाँव की ज़ंजीर हो गई
‘ग़ालिब’ ओ ‘मीर’ ‘मुसहफ़ी’
हम भी ‘फ़िराक़’ कम नहीं

वो रातों-रात ‘सिरी-कृष्ण’ को उठाए हुए
बला की क़ैद से ‘बसदेव’ का निकल जाना

वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
ज़ुल्फ़ों को उस ने खोल दिया रात हो गई

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गए
वाह-री ग़फ़लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम

तिरा ‘फ़िराक़’ तो उस दिन तिरा फ़िराक़ हुआ
जब उन से प्यार किया मैं ने जिन से प्यार नहीं

छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
निगाह-ए-नर्गिस-ए-राना तिरा जवाब नहीं

माज़ी के समुंदर में अक्सर यादों के जज़ीरे मिलते हैं
फिर आओ वहीं लंगर डालें फिर आओ उन्हें आबाद करें

firaq gorakhpuri shayari in hindi font

इस दौर में ज़िंदगी बशर की
बीमार की रात हो गई है

मैं ये तो नहीं कहता कि बशर दावा-ए-ख़ुदाई कर बैठे
फिर भी ग़म-ए-इश्क़ से इंसाँ में कुछ शान-ए-ख़ुदा आ जाती है

कहो तो अर्ज़ करें मान लो तो क्या कहना
तुम्हारे पास हम आए हैं इक ज़रूरत से

अहबाब से रखता हूँ कुछ उम्मीद-ए-ख़ुराफ़ात
रहते हैं ख़फ़ा मुझ से बहुत लोग इसी से

ऐ भूल न सकने वाले तुझ को
भूले न रहें तो क्या करें हम

इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
कोई करता रहेगा चारा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर कब तक

कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो

फ़रेब-ए-अहद-ए-मोहब्बत की सादगी की क़सम
वो झूट बोल कि सच को भी प्यार आ जाए

इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
हुस्न यूँ लाख छुपे लाख नुमायाँ हो जाए

firaq gorakhpuri thoughts on death

कहाँ इतनी ख़बर उम्र-ए-मोहब्बत किस तरह गुज़री
तिरा ही दर्द था मुझ को जहाँ तक याद आता है

firaq gorakhpuri shayari in hindi

माइल-ए-बेदाद वो कब था ‘फ़िराक़’
तू ने उस को ग़ौर से देखा नहीं

तिरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
उतर गया रग-ए-जाँ में ये नेश्तर फिर भी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
जुनूँ का नाम उछलता रहा ज़माने में

किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी
उमीद-वारों में कल मौत भी नज़र आई

जिन की ता’मीर इश्क़ करता है
कौन रहता है उन मकानों में

रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
शम्अ बे-नूर हुई सुब्ह का तारा निकला

तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और
कि गिरते गिरते भी दुनिया सँभल तो सकती है

firaq gorakhpuri death quotes in hindi

तिरा विसाल बड़ी चीज़ है मगर ऐ दोस्त
विसाल को मिरी दुनिया-ए-आरज़ू न बना

मैं आसमान-ए-मोहब्बत से रुख़्सत-ए-शब हूँ
तिरा ख़याल कोई डूबता सितारा है

चुप हो गए तेरे रोने वाले
दुनिया का ख़याल आ गया है

क़फ़स वालों की भी क्या ज़िंदगी है
चमन दूर आशियाँ दूर आसमाँ दूर

ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
ऐ दोस्त तुझे कहाँ छुपा लें

ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैं
तिरी निगाह-ए-करम का घना घना साया

फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
पहुँच के मंज़िल-ए-जानाँ पे आँख भर आई

तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस
कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ
ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में
तेरी तस्वीर उतरती जाती थी

अभी तो कुछ ख़लिश सी हो रही है चंद काँटों से
इन्हीं तलवों में इक दिन जज़्ब कर लूँगा बयाबाँ को

बे-ख़ुदी में इक ख़लिश सी भी न हो ऐसा नहीं
तू न आए याद लेकिन मैं तुझे भूला नहीं

क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था

ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
आज आई तिरी याद इस आहिस्ता-रवी से

दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त
ख़ाक का इतना चमक जाना ज़रा दुश्वार था

वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ के रुमूज़ न पूछ
कई दफ़ा तो तिरा नाम भी न याद आया

ज़ुल्मत ओ नूर में कुछ भी न मोहब्बत को मिला
आज तक एक धुँदलके का समाँ है कि जो था

मैं आज सिर्फ़ मोहब्बत के ग़म करूँगा याद
ये और बात कि तेरी भी याद आ जाए

मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
वही अंदाज़-ए-जहान-ए-गुज़राँ है कि जो था

कहाँ हर एक से बार-ए-नशात उठता है
बलाएँ ये भी मोहब्बत के सर गई होंगी

समझना कम न हम अहल-ए-ज़मीं को
उतरते हैं सहीफ़े आसमाँ से

चुपके चुपके उठ रहा है मध-भरे सीनों में दर्द
धीमे धीमे चल रही हैं इश्क़ की पुरवाइयाँ

सच तो ये है बड़े आराम से हूँ
तेरे हर लहज़ा सताने की क़सम

एक रंगीनी-ए-ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
एक शादाबी-ए-पिन्हाँ है बयाबानों में

रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ मानूस-ए-जहाँ होने लगा
ख़ुद को तेरे हिज्र में तन्हा समझ बैठे थे हम

आँख चुरा रहा हूँ मैं अपने ही शौक़-ए-दीद से
जल्वा-ए-हुस्न-ए-बे-पनाह तू ने ये क्या दिखा दिया

ये सानेहे दिल-ए-ग़म-गीं हुआ ही करते हैं
न इश्क़ ही की ख़ता है न हुस्न ही का क़ुसूर

मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह अब मुझ से तिरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं

थी यूँ तो शाम-ए-हिज्र मगर पिछली रात को
वो दर्द उठा ‘फ़िराक़’ कि मैं मुस्कुरा दिया

मालूम है मोहब्बत लेकिन उसी के हाथों
ऐ जान-ए-इशक़ मैं ने तेरा बुरा भी चाहा

shayari of firaq gorakhpuri in hindi

नींद आ चली है अंजुम-ए-शाम-ए-अबद को भी
आँख अहल-ए-इंतिज़ार की अब तक लगी नहीं

ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा उसी का है जहाँ में तुझ को
देख कर भी जो लिए हसरत-ए-दीदार चला

इक्का-दुक्का सदा-ए-ज़ंजीर
ज़िंदाँ में रात हो गई है

मिरे दिल से कभी ग़ाफ़िल न हों ख़ुद्दाम-ए-मय-ख़ाना
ये रिंद-ए-ला-उबाली बे-पिए भी तो बहकता है

दिल-ए-ग़म-गीं की कुछ महवीय्यतें ऐसी भी होती हैं
कि तेरी याद का आना भी ऐसे में खटकता है

ले उड़ी तुझ को निगाह-ए-शौक़ क्या जाने कहाँ
तेरी सूरत पर भी अब तेरा गुमाँ होता नहीं

सरहद-ए-ग़ैब तक तुझे साफ़ मिलेंगे नक़्श-ए-पा
पूछ न ये फिरा हूँ मैं तेरे लिए कहाँ कहाँ

इस की ज़ुल्फ़ आरास्ता पैरास्ता
इक ज़रा सी बरहमी दरकार है

उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम
जो दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में

इस पुर्सिश-ए-करम पे तो आँसू निकल पड़े
क्या तू वही ख़ुलूस सरापा है आज भी

वो कुछ रूठी हुई आवाज़ में तज्दीद-ए-दिल-दारी
नहीं भूला तिरा वो इल्तिफ़ात-ए-सर-गिराँ अब तक

लुत्फ़-ओ-सितम वफ़ा जफ़ा यास-ओ-उमीद क़ुर्ब-ओ-बोद
इश्क़ की उम्र कट गई चंद तवहहुमात में

तुझ से हिजाब क्या मगर ऐ हम-नशीं न पूछ
उस दर्द-ए-हिज्र को जो शब-ए-ग़म उठा नहीं

रहा है तू मिरे पहलू में इक ज़माने तक
मिरे लिए तो वही ऐन हिज्र के दिन थे

तारा टूटते सब ने देखा ये नहीं देखा एक ने भी
किस की आँख से आँसू टपका किस का सहारा टूट गया

214 thoughts on “फ़िराक गोरखपुरी शायरी | firaq gorakhpuri shayari”

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