जीवन पर कविता | मै एक लाल गुब्बारा
मै एक लाल गुब्बारा
जिंदगी वाला ढका सा चौबारा
पड़ा यहाँ मै थका बेचारा
उम्मीदे बांधती जाल दुबारा
मै हु एक लाल गुब्बारा
कर देता उस दूकान पे गुजारा
भर लेता अपने मकान का नजारा
लूट जाता कभी तेरे सजने में
फुट जाता कभी मेरे संभलने में
फूल के हो जाता आवारा
फूटते किया जाता दुत्कारा
फर्श पे गिरा बेहाल बेचारा
मै हु एक लाल गुब्बारा
जब उठाता कोई उम्मीद से
हट जाता अपनी ढोयी जिद्द से
कही औरो का, कभी हु तुम्हारा
मै हु एक लाल गुब्बारा
रंजीत एक आम आदमी
हार के जितने वाला रंजीत है वो
इन्द्रियों से हारा इंद्रजीत है वो
बाला का शिकारी है यह
गुमला का अधिकारी है यह
कभी खुद पे गुर्राता है
जाने क्यों डर जाता है
बीवी से थर्राता है
माने हुए डगर जाता है
समय का हारा रंजीत है ये
बिना लब्ज़ संगीत है ये
कभी खुद को जिम्मेदार बताता
फिर खुदवाला ईमानदार सताता
दिल से हारा दिलजीत है वो
दुश्मनो का अरिजीत है वो
कभी पराजित कभी विभाजित
पर आखिर में रंजीत है
माफ़ किया जाए | New Hindi Kavita on student life
माफ़ किया जाए
जिंदगी का अर्थ भूल चूका है ये लड़का
माफ़ किया जाए
बंदगी का अनर्थ झूल चूका है ये कड़का
माफ़ किया जाए
जाओ बुझाओ उन जलते मकानों को
आओ दबाओ उन मसलते बैमानो को
दरिंदगी का अर्थ कुबूल चूका है ये लड़का
माफ़ किया जाए
गन्दगी का सामर्थ वसूल चूका है भड़का
साफ़ किया
बहुत हो रहा वात विवाद इन बंद मकानों में
चिरकुट हो गया ज़ात जिहाद इन चंद जहानो में
अतरंगी सा रस वसूल चूका है ये तड़का
साफ़ किया जाए
सारंगी को कस झूल चूका है लड़का
माफ़ किया जाए ,