Swami Dayanand saraswati quotes in hindi

Dayanand saraswati quotes in hindi

नुक्सान से निपटने में सबसे ज़रूरी चीज है उससे मिलने वाले सबक को ना भूलना. वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है. दयानन्द सरस्वती

इंसान को दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है.

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लोग कहते हैं कि वे समझते हैं कि मैं क्या कहता हूं और मैं सरल हूं. मैं सरल नहीं हूँ, मैं स्पष्ट हूं.

दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये और आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा.

कोई मूल्य तब मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वयम के लिए मूल्यवान हो.

सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो.

आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें. लेकिन, ये कभी ऐसे काम नहीं करता. दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं.

जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने मेंही आत्म-विकास निहित है.

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गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है. और बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है.

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प्रबुद्ध होना- ये कोई घटना नहीं हो सकती. जो कुछ भी यहाँ है वह अद्वैत है. ये कैसे हो सकता है? यह स्पष्टता है.

हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है और थोपा नहीं जाता. ऐसी कोई कृपा नहीं है जो कमाई ना गयी हो.

अगर आप पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती रहे तो आप भावनात्मक रूप से अधिक समय तक खड़े नहीं हो सकते.
Dayanand Saraswati दयानन्द सरस्वती

Swami dayanand saraswati quotes in hindi

मुझे सत्य का पालन करना पसंद है; बल्कि, मैंने औरों को उनके अपने भले के लिए सत्य से प्रेम करने और मिथ्या को त्यागने के लिए राजी करने को अपना कर्त्तव्य बना लिया है. अतः अधर्म का अंत मेरे जीवन का उदेश्य है.

कोई भी मानव हृदय सहानुभूति से वंचित नहीं है. कोई धर्म उसे सिखा-पढ़ा कर नष्ट नहीं कर सकता. कोई संस्कृति, कोई राष्ट्र कोई राष्ट्रवाद- कोई भी उसे छू नहीं सकता क्योंकि ये सहानुभूति है.

छात्र की योग्यता ज्ञान अर्जित करने के प्रति उसके प्रेम, निर्देश पाने की उसकी इच्छा, ज्ञानी और अच्छे व्यक्तियों के प्रति सम्मान, गुरु की सेवा और उनके आदेशों का पालन करने में दिखती है.

क्योंकि मनुष्यों के भीतर संवेदना है, इसलिए अगर वो उन तक नहीं पहुँचता जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है.

हालांकि संगीत भाषा, संस्कृति और समय से परे है, और नोट समान होते हुए भी भारतीय संगीत अद्वितीय है क्योंकि यह विकसित है, परिष्कृत है और इसमें धुन को परिभाषित किया गया है.

किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है. इसलिए, इसका परिणाम होगा. यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं.

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लोगों को कभी भी चित्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए. मानसिक अन्धकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है.

ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र और बुद्धिमान है. उसकी प्रकृति, गुण, और शक्तियां सभी पवित्र हैं. वह सर्वव्यापी, निराकार, अजन्मा, अपार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली, दयालु और न्याययुक्त है. वह दुनिया का रचनाकार, रक्षक, और संघारक है.

वह अच्छा और बुद्धिमान है जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है.

जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता. हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग अन्दर से इसे नहीं मानते- ‘ये मेरे साथ नहीं होगा.’ इसी कारण से मृत्यु सबसे कठिन चुनौती है जिसका मनुष्य को सामना करना पड़ता है.

वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्वपूर्ण है.

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लोगों को भगवान् को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए. पुनरावृत्ति और औपचारिकताएं किसी काम की नहीं हैं.

अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की तसवीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है. लेकिन भगवान् की तसवीरें और छवियाँ बनाना गलत है.

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मोक्ष पीड़ा सहने और जन्म-मृत्यु की अधीनता से मुक्ति है, और यह भगवान की अपारता में स्वतंत्रता और प्रसन्नता का जीवन है.

धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाती है. इसका विपरीत है अधर्म का खजाना.

निरीह सुख सद गुणों और सही ढंग से अर्जित धन से मिलता है.

“ये ‘शरीर’ ‘नश्वर’ है, हमे इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, ‘मनुष्यता’ और ‘आत्मविवेक’ क्या है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“वेदों मे वर्णीत सार का पान करनेवाले ही ये जान सकते हैं कि ‘जिन्दगी’ का मूल बिन्दु क्या है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“क्रोध का भोजन ‘विवेक’ है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योकी ‘विवेक’ नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

‘अहंकार’ एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह ‘आत्मबल’ और ‘आत्मज्ञान’ को खो देता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

‘मानव’ जीवन मे ‘तृष्णा’ और ‘लालसा’ है, और ये दुखः के मूल कारण है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती


“‘क्षमा’ करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

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“‘काम’ मनुष्य के ‘विवेक’ को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“मोह एक अत्यंन्त विस्मित जाल है, जो बाहर से अति सुन्दर और अन्दर से अत्यंन्त कष्टकारी है; जो इसमे फँसा वो पुरी तरह उलझ ही गया।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती


“ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये ‘मनुष्य’ को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।”~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

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“मद ‘मनुष्य की वो स्थिति या दिशा’ है, जिसमे वह अपने ‘मूल कर्तव्य’ से भटक कर ‘विनाश’ की ओर चला जाता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“संस्कार ही ‘मानव’ के ‘आचरण’ का नीव होता है, जितने गहरे ‘संस्कार’ होते हैं.उतना ही ‘अडिग’ मनुष्य अपने ‘कर्तव्य’ पर, अपने ‘धर्म’ पर, ‘सत्य’ पर और ‘न्याय’ पर होता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“अगर ‘मनुष्य’ का मन ‘शाँन्त’ है, ‘चित्त’ प्रसन्न है, ह्रदय ‘हर्षित’ है, तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का ‘फल’ है।” स्वामी दयानन्द सरस्वती


जिस ‘मनुष्य’ मे ‘संतुष्टि’ के ‘अंकुर’ फुट गये हों, वो ‘संसार’ के ‘सुखी’ मनुष्यों मे गिना जाता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती


“यश और ‘कीर्ति’ ऐसी ‘विभूतियाँ’ है, जो मनुष्य को ‘संसार’ के माया जाल से निकलने मे सबसे बङे ‘अवरोधक’ होते है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“जब ‘मनुष्य’ अपने ‘क्रोध’ पर विजय पा ले, ‘काम’ को काबू मे कर ले, ‘यश’ की इच्छा को त्याग दे, ‘माया’ जाल से विरक्त हो जाये, तब उसमे जो “दिव्य विभुतियाँ “आती है.उसे ही “कुण्डिलनी शक्ति” कहते है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

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” आत्मा, ‘परमात्मा’ का एक अंश है, जिसे हम अपने ‘कर्मों’ से ‘गति’ प्रदान करते है। फिर ‘आत्मा’ हमारी ‘दशा’ तय करती है।” स्वामी दयानन्द सरस्वती

“मानव को अपने पल-पल को ‘आत्मचिन्तन’ मे लगाना चाहिए, क्योकी हर क्षण हम ‘परमेश्वर’ द्वार दिया गया ‘समय’ खो रहे है।” स्वामी दयानन्द सरस्वती

“मनुष्य की ‘विद्या उसका अस्त्र’, ‘धर्म उसका रथ’, ‘सत्य उसका सारथी’ और ‘भक्ति रथ के घोङे होते है’।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“इस ‘नश्वर शरीर’ से ‘प्रेम’ करने के बजाय हमे ‘परमेश्वर’ से प्रेम करना चाहिए, ‘सत्य और धर्म, ‘ से प्रेम करना चाहिए; क्योकी ये ‘नश्वर’ नही हैं।”~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुख दुःख आदि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खेंच सके वह पण्डित कहाता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते है और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते है अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता |” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

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. “जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है |” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

“काम करने से पहले सोचना बुद्धिमानी, काम करते हुए सोचना सतर्कता, और काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।” ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती

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जीह्वा को उसे व्यक्त करना चाहिए जो ह्रदय में है.स्वामी दयानन्द सरस्वती

उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरम्भ करता है, और लोक-कल्याण तथा सभ्यता में योगदान देता है.

भगवान का ना कोई रूप है ना रंग है. वह अविनाशी और अपार है. जो भी इस दुनिया में दिखता है वह उसकी महानता का वर्णन करता है.स्वामी दयानन्द सरस्वती

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आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं.

स्वामी जी के अंतिम शब्द: “प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।”

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