Ahmad Mushtaq Shayari : अहमद मुश्ताक़ पाकिस्तान के उर्दू शायर थे जिन्होंने अपनी शायरियो से उर्दू जगत में अमर कर लिया | वह पाकिस्तान के सबसे विख्यात और प्रतिष्ठित आधुनिक शायरों में से एक है |अहमद मुश्ताक़ का जन्म 1933 में लाहौर के जिले में हुआ था | हमने आपको अपनी पोस्ट में नीचे कुछ अहमद मुश्ताक़ शायरियां बताई है जिन शायरियो की मदद से आप इनके व्यक्तित्व के बारे में भी काफी कुछ जान सकते है |
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील
वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की
अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है
वो जिस के नाम से होते न थे जुदा मिरे लब
इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है
ishq men kaun bata sakta hai
kis ne kis se sach bola hai
tanhai men karni to hai ik baat kisi se
lekin vo kisi vaqt akela nahin hota
ye paani khamushi se bah raha hai
ise dekhen ki is men Duub jaaen
pata ab tak nahin badla hamara
vahi ghar hai vahi qissa hamara
hamara kya hai jo hota hai ji udaas bahut
to gul tarashte hain titliyan banate hain
jahan-e-ishq se ham sarsari nahin guzre
ye vo jahan hai jahan sarsari nahin koi shai
guzre hazar badal palkon ke saae saae
utre hazar suraj ik shah-nashin-e-dil par
bhuul gai vo shakl bhi akhir
kab tak yaad koi rahta hai
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
इसे देखें कि इस में डूब जाएँ
पता अब तक नहीं बदला हमारा
वही घर है वही क़िस्सा हमारा
भूल गई वो शक्ल भी आख़िर
कब तक याद कोई रहता है
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है
ख़ैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन
तुझ से मिलना था कि पर लग गए रुस्वाई को
मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रात
उस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती है
हम भी ऐसे ही थे जब आए थे वीराने में
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
कोई रो कर तो कोई बाल बना कर आया
इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है
bala ki chamak us ke chehre pe thi
mujhe kya khabar thi ki mar jaega
dukh ke safar pe dil ko ravana to kar diya
ab saari umr haath hilate rahenge ham
mujhe maalum hai ahl-e-vafa par kya guzarti hai
samajh kar soch kar tujh se mohabbat kar raha huun main
hoti hai shaam aankh se aansu ravan hue
ye vaqt qaidiyon ki rihai ka vaqt hai
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
उसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ
तू ने ही तो चाहा था कि मिलता रहूँ तुझ से
तेरी यही मर्ज़ी है तो अच्छा नहीं मिलता
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है
ek lamhe men bikhar jaata hai tana-bana
aur phir umr guzar jaati hai yakjai men
ahl-e-havas to khair havas men hue zalil
vo bhi hue kharab, mohabbat jinhon ne ki
ab us ki shakl bhi mushkil se yaad aati hai
vo jis ke naam se hote na the juda mire lab
khoya hai kuchh zarur jo us ki talash men
har chiiz ko idhar se udhar kar rahe hain ham
वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गया
उसे क्या ख़बर मिरे दिल में भी कभी आरज़ू-ए-गुनाह थी
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
वो अपने ध्यान में बैठे हुए अच्छे लगे हम को
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
बला की चमक उस के चेहरे पे थी
मुझे क्या ख़बर थी कि मर जाएगा
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम
rone lagta huun mohabbat men to kahta hai koi
kya tire ashkon se ye jangal hara ho jaega
ik raat chandni mire bistar pe aai thi
main ne tarash kar tira chehra bana diya
tum aae ho tumhen bhi aazma kar dekh leta huun
tumhare saath bhi kuchh duur ja kar dekh leta huun
bahta aansu ek jhalak men kitne ruup dikhaega
aankh se ho kar gaal bhigo kar miTTi men mil jaega
mil hi jaega kabhi dil ko yaqin rahta hai
vo isi shahr ki galiyon men kahin rahta hai
मुझे मालूम है अहल-ए-वफ़ा पर क्या गुज़रती है
समझ कर सोच कर तुझ से मोहब्बत कर रहा हूँ मैं
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है
नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ
शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था
nae divanon ko dekhen to khushi hoti hai
ham bhi aise hi the jab aae the virane men
yaar sab jam.a hue raat ki khamoshi men
koi ro kar to koi baal bana kar aaya
ik zamana tha ki sab ek jagah rahte the
aur ab koi kahin koi kahin rahta hai
ye tanha raat ye gahri fazaen
use DhunDen ki us ko bhuul jaaen
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
main bahut khush tha kaDi dhuup ke sannaTe men
kyuun tiri yaad ka badal mire sar par aaya
jab shaam utarti hai kya dil pe guzarti hai
sahil ne bahut puchha khamosh raha paani
jo muqaddar tha use to rokna bas men na tha
un ka kya karte jo baten na-gahani ho gaiin
yahi duniya thi magar aaj bhi yuun lagta hai
jaise kaaTi hon tire hijr ki raten kahin aur
जब शाम उतरती है क्या दिल पे गुज़रती है
साहिल ने बहुत पूछा ख़ामोश रहा पानी
मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो
मिलने की ये कौन घड़ी थी
बाहर हिज्र की रात खड़ी थी
तू अगर पास नहीं है कहीं मौजूद तो है
तेरे होने से बड़े काम हमारे निकले
अरे क्यूँ डर रहे हो जंगल से
ये कोई आदमी की बस्ती है
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है
संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग
आँख उठा कर भी नहीं देखते दीवाने को
हम अपनी धूप में बैठे हैं ‘मुश्ताक़’
हमारे साथ है साया हमारा
मोहब्बत मर गई ‘मुश्ताक़’ लेकिन तुम न मानोगे
मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ
बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ
गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए
वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी
फिरती हैं वो शक्लें जिन्हें देखा नहीं होता
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे
ऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
टपकती हैं अभी तक रस्सियाँ आहिस्ता आहिस्ता
khair badnam to pahle bhi bahut the lekin
tujh se milna tha ki par lag gae rusvai ko
main ne kaha ki dekh ye main ye hava ye raat
us ne kaha ki meri paDhai ka vaqt hai
tu ne hi to chaha tha ki milta rahun tujh se
teri yahi marzi hai to achchha nahin milta
roz milne pe bhi lagta tha ki jug biit gae
ishq men vaqt ka ehsas nahin rahta hai
nindon men phir raha huun use DhunDhta hua
shamil jo ek khvab mire rat-jage men tha
tire aane ka din hai tere raste men bichhane ko
chamakti dhuup men saae ikaTThe kar raha huun main
vo jo raat mujh ko baDe adab se salam kar ke chala gaya
use kya khabar mire dil men bhi kabhi arzu-e-gunah thi
ham un ko soch men gum dekh kar vapas chale aae
vo apne dhyan men baiThe hue achchhe lage ham ko
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
वहाँ सलाम को आती है नंगे पाँव बहार
खिले थे फूल जहाँ तेरे मुस्कुराने से
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत
कौन कहता है कि ये सब कुछ फ़ना हो जाएगा
paani men aks aur kisi asman ka hai
ye naav kaun si hai ye dariya kahan ka hai
gum raha huun tire khayalon men
tujh ko avaz umr bhar di hai
hijr ik vaqfa-e-bedar hai do nindon men
vasl ik khvab hai jis ki koi taabir nahin
faza-e-dil pe kahin chha na jaae yaas ka rang
kahan ho tum ki badalne laga hai ghaas ka rang