दोस्तो आज का पोस्ट कुमार विश्वास शायरी ( Dr kumar vishwas shayari in hindi ) है और इस पोस्ट मे आप कुमार विश्वास की शायरी पढ़ सकते है डा0 कुमार विश्वास की एक से बढ कर एक शायरियां और कविताओं की चंद लाइनों को जो आप को दिवाना बना देगी.
Dr kumar vishwas shayari
डॉ. कुमार विश्वास एक महान हिंदी कवि (dr kumar vishwas shayari in hindi ) है इसके अलावा यह राजनैतिक कार्यकर्ता भी है कुमार विश्वास का जन्म फ़रवरी 1970 में पिलखुआ, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था
koi deewana kehta hai lyrics
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
,मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
.मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.
पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो,
उस पे फिर से अधिकार क्या करना
मोहब्बत का मज़ा तो,
डूबने की कशमकश में है.
जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना.
Panahon Main Jo Aaya Ho,
Us Par War Kya Karna
Jo Dil Hara Hua Ho,
Us Par Adhikar Kya Karna
Mohabbt Ka Maza To Dubne Ki
Kashmkash Main Hain
Jo Ho Malum Gahraayi,
To Dariya Paar Kya Karna.
मेरे जीने मरने में,
तुम्हारा नाम आएगा.
मैं सांस रोक लू फिर भी,
यही इलज़ाम आएगा.
हर एक धड़कन में जब तुम हो,
तो फिर अपराध क्या मेरा,
अगर राधा पुकारेंगी,
तो घनश्याम आएगा.
Mere jeene marne main,
Tumhara naam aayega.
Main saans rok lu phir bhi,
Yahi ilzaam aayegaa.
Har ek dhdkan main jab tum ho,
To phir apradh kya mera.
Agar Radha pukarengi,
To Ghanshyam aayega.
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kumar vishwas poetry
कहीं पर जग लिए तुम बिन,
कहीं पर सो लिए तुम बिन.
भरी महफिल में भी अक्सर,
अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन.
Kahi par jag liye tum bin,
kahi par so liye tum bin
Bhari mahfil main bhi aksar,
Akele ho liye tum bin
Ye pichle chand varshon ki,
kamai saath hain apne
Kabhi to hans liye tum bin,
Kabhi to ro liye tum bin.
गिरेबां चाक करना क्या है,
सीना और मुश्किल है.
हर एक पल मुस्कुरा के,
अश्क पीना और मुश्किल है.
हमारी बदनसीबी ने,
हमें इतना सीखाया है.
किसी के इश्क में मरने से,
जीना और मुश्किल है.
kumar vishwas shayari in hindi
Girebaan chaak karna kya hain,
Seena aur mushkil hain
Har ek pal muskura ke,
Ashq peena aur mushkil hain
Humari badnaseebee ne,
Hume itna shikhaya hain
Kisi ke ishq main marne se,
Jeena aur mushkil hain.
यह चादर सुख की मोल क्यू,
सदा छोटी बनाता है.
सीरा कोई भी थामो,
दूसरा खुद छुट जाता है.
तुम्हारे साथ था तो मैं,
जमाने भर में रुसवा था.
मगर अब तुम नहीं हो तो,
ज़माना साथ गाता है.
Yah chadar sukh ki mola kyu,
Sada choti banata hain.
Seera koi bhi thamo,
Dusra khud chut jaata hain.
Tumhare saath tha to main,
zamaane bhar main ruswa tha.
Magar ab tum nahi ho to,
Zamana sath gata hain.
कोई कब तक महज सोचे,
कोई कब तक महज गाए.
ईलाही क्या ये मुमकिन है कि
कुछ ऐसा भी हो जाऐ.
मेरा मेहताब उसकी रात के
आगोश मे पिघले
मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ
वो मुझमे घुल के सो जाऐ.
Koi kab tak mahaz soche,
Koi kab tak mahaz gaaye.
Llaahi kya ye mumkin hai ki,
Kuchh aesa bhi ho jaaye.
Mera mehtaab uski raat ke,
Aagosh mein pighale.
Main uski neend mein jaagun,
Wo mujhme ghul ke so jaaye
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तुझ को गुरुर ए हुस्न है
मुझ को सुरूर ए फ़न.
दोनों को खुद पसंदगी की
लत बुरी भी है.
तुझ में छुपा के खुद को
मैं रख दूँ मग़र मुझे.
कुछ रख के भूल जाने की
आदत बुरी भी है.
हर इक खोने में हर इक पाने में
तेरी याद आती है
नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है.
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ
समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है.
घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे
देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा ?
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा.
सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर
क्या डर जाऊँगा?
तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा,
भींग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत सी,
इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना, मर जाऊँगा.
उम्मीदों का फटा पैरहन,
रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है,
तुम से मिलने की कोशिश में,
किस-किस से मिलना पड़ता है.
घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे,
देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा ?
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है,
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा .
हिम्मत ए रौशनी बढ़ जाती है,
हम चिरागों की इन हवाओं से,
कोई तो जा के बता दे उस को,
चैन बढता है बद्दुआओं से.
अजब है कायदा दुनिया ए इश्क का मौला
फूल मुरझाये तब उस पर निखार आता है
अजीब बात है तबियत ख़राब है जब से
मुझ को तुम पे कुछ ज्यादा प्यार आता है.
डॉ कुमार विश्वास शायरी
तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है
अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है.
बस्ती – बस्ती घोर उदासी,
पर्वत – पर्वत सुनापन.
मन हीरा बेमोल लुट गया,
घिस -घिस रीता मन चंदन.
इस धरती से उस अम्बर तक,
दो ही चीज़ गजब की है.
एक तो तेरा भोलापन है,
एक मेरा दीवानापन.
समंदर पीर का अन्दर है,
लेकिन रो नहीं सकता
यह आंसू प्यार का मोती है,
इसको खो नहीं सकता.
मेरी चाहत को दुल्हन तू,
बना लेना मगर सुन ले.
जो मेरा हो नहीं पाया,
वो तेरा हो नहीं सकता.
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर है हम भी
बहुत मशहुर हो तुम भी, बहुत मशहुर है हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर है हम भी
अत : मजबुर हो तुम भी, अत : मजबुर है हम भी.
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हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है,
खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है.
किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का,
जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है.
ना पाने की खुशी है कुछ,
ना खोने का ही कुछ गम है.
ये दौलत और शोहरत सिर्फ,
कुछ ज़ख्मों का मरहम है.
अजब सी कशमकश है,
रोज़ जीने, रोज़ मरने में.
मुक्कमल ज़िन्दगी तो है,
मगर पूरी से कुछ कम है.
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा,
में भी हूँ और तू भी है.
आसमान से गिरा परिंदा,
में भी हूँ और तू भी है.
छुट गयी रस्ते में,
जीने मरने की सारी कसमे.
अपने – अपने हाल में जिंदा,
में भी हूँ और तू भी है.
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है,
समझता हूँ.
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है,
समझता हूँ.
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये
मुमकिन है नहीं लेकिन.
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है,
समझता हूँ.
फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है,
ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है,
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में,
कलम में शुक्र-ए- खुदा है कि रौशनाई है.
क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा,
गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा.
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर,
मैं हँसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा.
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भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा.
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है.
कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है
जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है
तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है.
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी तो, बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कितना हु , तू मुझसे दूर कितनी है
ये तेरा दिल समझता है , या मेरा दिल समझता है.
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा
ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे.
बदलने को तो इन आखोँ के मंज़र कम नहीं बदले ,
तुम्हारी याद के मौसम,हमारे ग़म नहीं बदले ,
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी,तब तो मानोगी ,
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले.
ये वो ही इरादें हैं, ये वो ही तबस्सुम है
हर एक मोहल्लत में, बस दर्द का आलम है
इतनी उदास बातें, इतना उदास लहजा ,
लगता है की तुम को भी, हम सा ही कोई गम है.
ना पाने की खुशी है कुछ,ना खोने का ही कुछ गम है…
ये दौलत और शौहरत सिर्फ कुछ जख्मों का मरहम है…
अजब सी कशमकश है रोज जीने ,रोज मरने में…
मुक्कमल जिंदगी तो है,मगर पूरी से कुछ कम है…”
गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्कुराकर अश्क पीना और मुश्किल है,
हमारी बदनसीबी ने हमें बस इतना सिखाया है,
किसी के इश्क़ में मरने से जीना और मुश्किल है.
Kumar Vishwas Shayari
तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मो से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता..
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत हे ज़माने से
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता..
मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं..
नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।
मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है,
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है…!
सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से,
मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है….!!
सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है,
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है.
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा,
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है.
वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं
आप में कौन-कौन रहता है
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं।
मेरे जीने में मरने में, तुम्हारा नाम आएगा
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा
हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा
अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा
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वो जिसका तीरे छुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहां खत भी जरा सी देर में अखबार होता है।
मिल गया था जो मुक़द्दर वो खो के निकला हूँ.
में एक लम्हा हु हर बार रो के निकला हूँ.
राह-ए-दुनिया में मुझे कोई भी दुश्वारी नहीं.
में तेरी ज़ुल्फ़ के पेंचो से हो के निकला हूँ .
गाँव-गाँव गाता फिरता हूँ, खुद में मगर बिन गाय हूँ,
तुमने बाँध लिया होता तो खुद में सिमट गया होता मैं,
तुमने छोड़ दिया है तो कितनी दूर निकल आया हूँ मैं…!!
कट न पायी किसी से चाल मेरी, लोग देने लगे मिसाल मेरी…!
मेरे जुम्लूं से काम लेते हैं वो, बंद है जिनसे बोलचाल मेरी…!!
ये दिल बर्बाद करके, इसमें क्यों आबाद रहते हो
कोई कल कह रहा था तुम अल्लाहाबाद रहते हो.
ये कैसे शोहरते मुझे अता कर दी मेरे मौला
में सब कुछ भूल जाता हु मगर तुम याद रहते हो.
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
हास्य बातो या जज़्बातो मुलाकातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में ये सोचते है सब
ये हंगामे की राते है या है रातो का हंगामा
हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।
र एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बिच में फिर से जमाना है…!!
कोई खामोश है इतना बहाने भूल आया हु
किसी की एक तरन्नुम में तराने भूल आया हु
मेरी अब राह मत ताकना कभी ऐ आसमा वालो
में एक चिड़िआ की आँखों में उड़ाने भूल आया हु.
पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है
अँधेरा किसको कहते है ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद तारो में तेरा ही रूप दिखता है
मोहब्बत में नुमाइश को अदाए तू समझता है
मेहफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है,
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल जाना.
रस्ते में ये मैखाना तो पड़ता है.
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